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भक्ति के मार्ग अलग हो सकते हैं,लेकिन मंजिल एक ही

 

Post Himachal, Darlaghat

Blog Keshav Vashisth: संत निरंकारी मिशन के तत्वावधान में दाड़लाघाट स्थित संत निरंकारी सत्संग भवन पर सत्संग का आयोजन किया गया। इसमें स्थानीय सहित दूर-दराज के क्षेत्रों से आए श्रद्धालुओं ने महात्मा के प्रवचनों का श्रवण किया। इस मौके पर मौजूद महापुरुषों ने अपने विचार व्यक्त किए। वक्ताओं ने कहा कि निराकार परमात्मा के अहसास में जो हम सभी का मूल है। इस एक को जानकर,एक को मान कर एक होकर इसकी भक्ति करनी चाहिए। भक्ति के मार्ग अलग हो सकते हैं,लेकिन मंजिल एक ही है। दाड़ला ब्रांच के मुखी महात्मा विद्या सागर ठाकुर ने अपने विचारों में कहा कि ब्रह्म ज्ञान प्राप्त होने के पश्चात भक्त को चाहिए कि निरंतर सत्संग में आकर भगवान की महिमा का यशोगान प्रेम और श्रद्धा से सुने तथा समझे। यदि सत्संग में पहुंचकर भी संतों व भगवान से प्रेम नहीं बढ़ रहा तो समझो की गाड़ी अभी भी वहीं रुकी हुई है। भगवान के भक्त संसार में ऐसे रहते हैं,जैसे कीचड़ में कमल लिप्त नहीं होता और अपना प्रेम सूर्य से ही निर्वाह करता है,निरंकार प्रमात्मा की शरण में जाने से इंसान वह सबकुछ पा लेता है,जो कि उसे पाने में असंभव लगता है। उसके चरणों में जाने से असीम शांति मिलती है। पूर्व सयोजक महात्मा शंकर दास गुप्ता ने इंसानियत और रुहानियत का पाठ पढ़ाया। उन्होंने कहा कि निरंकारियों की पहचान उनके इंसानियत वाले गुणों,व्यवहार और आचरण से है। इससे पूर्व अन्य अनुयायियों ने विचारों और भजनों के माध्यम से निरंकारी मिशन का प्रचार एवं गुणगान किया। इस मौके पर काफी संख्या में निरंकारी समुदाय के अनुयायी उपस्थित रहे।

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