अध्यात्म: दानवीर कर्ण जानें कैसे बन गए माहुंनाग देवता, करते हैं भक्तों की मन्नतें करते हैं पूरी
हाइलाइट्स
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महाभारत में अुर्जन कर्ण का वध करने के बाद ग्लानी से भर गया था
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मान्यता है कि नागमित्रों के साथ कर्ण का शव अर्जुन ने तत्तापानी में जलाया था
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चिता से नाग प्रकट हुए, जिन्हें आज तक माहूंनाग के नाम से जाना जाता है
पोस्ट हिमाचल न्यूज एजेंसी
कुनिहार/मंडी, अक्षरेश शर्मा। देवभूमि हिमाचल के कण-कण में देवताओं का निवास है।इन देवी- देवताओं के मंदिर भारत के इतिहास और भक्तों की आस्था को समेटे हुए हैं। ऐसा ही माहुंनाग मंदिर है, जो कि जिला मंडी की तहसील करसोग में स्थित है। यह मंदिर करसोग से 37 किलोमीटर और शिमला से वाया तत्तापानी 80 किलोमीटर की दूरी पर है। बखारी कोठी ग्राम पंचायत सवामाहूं में स्थापित मंदिर को मूल मंदिर के रूप में माना गया है। ऐसी मान्यता है कि माहूंनाग को दानवीर कर्ण का अवतार माना जाता है। देव बड़ेयोगी माहूंनाग के गुरु माने जाते हैं। महाभारत के युद्ध में अर्जुन ने छल से कर्ण का वध तो कर दिया लेकिन अर्जुन कर्ण को मारने के बाद ग्लानी से भर गया। कहा जाता है कि अर्जुन ने अपने नाग मित्रों कि सहायता से कर्ण के शव को लाकर सतलुज के किनारे तत्तानी के पास अंतिम संस्कार किया था। उसी चिता से एक नाग प्रकट हुआ। वह नाग इसी जगह बस गया। इसी नाग देवता को लोग आज भी माहूंनाग के रूप में पूजते हैं।
….जब औरंगजेब की कैद से आजाद हुए थे सुकेत के राजा श्याम सेन
माहूंनाग के बारे में माना जाता है कि एक बार सुकेत के राजा श्याम सेन को मुग़ल बादशाह औरंगजेब ने छल से दिल्ली में कैद कर लिया। वह सुकेत को अपने राजा के अधीन करना चाहता था। सुकेत के राजा श्याम सेन ने कैद से मुक्ति पाने के लिए कई देवी- देवताओं को याद किया। लेकिन कैद से निकल नहीं पाया। तब राजा ने नागराज कर्ण का स्मरण किया। माहूंगाग ने राजा को मधुमक्खी के रूप में दर्शन दिए और जल्दी ही कैद से छूटने की बात कही।
राजा ने कहा कि अगर वह कैद से मुक्त हो जाएगा तो वह अपना आधा राज्य राजा कर्ण माहुंनाग को समर्पित कर देगा। इसके बाद मुग़ल सम्राट को शतरंज खेलने कि इच्छा हुई लेकिन उसे खेलने के लिए कोई खिलाड़ी नहीं मिला। तब उसने राजा श्याम सेन को खेलने के लिए कैद से मुक्त किया। उस दिन राजा श्याम सेन शतरंज में जीतता गया और अंत में उसने अपने मुक्त होने कि बाज़ी जीत ली साथ ही अपने राज्य कि और चल पड़ा।अपने वचन के अनुसार राजा ने माहूंनाग को अपना आधा राज्य और 400 रूपए नगद चांदी हर साल नजराना देना तय किया। किन्तु माहुंनाग ने इतना बड़ा क्षेत्र नहीं लिया और केवल माहूंनाग क्षेत्र का सीमित भूभाग ही लिया। माहुंनाग स्वर्ण दान तो करते हैं पर स्वर्ण श्रृंगार नहीं करते। माहूंनाग मंदिर में सवा किलो सोने का मेहरा है और चांदी के 8 छत्र हैं।
गुर को परीक्षा के लिए सतलुज से निकालनी पड़ती है रेत
चैत्र मास के नवरात्रों में हर साल लगभग एक मास कि रथ यात्रा माहुनाग सुंदरनगर क्षेत्र के लोक कल्याण हेतु करते हैं। जिसने देवता का रथ गुर, पुजारी, मेहते कारदार, बजंत्री और श्रद्धालु साथ चलते हैं। ज्येष्ठ मास कि सक्रांति से 5 दिवसीय मेला बागड़दड में बड़ी धूम धाम से मनाया जाता है। इस मेले के इतिहास का संबंध हिमाचल में अंग्रेजी शासन से है। माहूंनाग के गुर को परीक्षा के लिए सतलुज में छलांग लगा कर सुखी रेत निकालनी पड़ती है। माहूंनाग मंदिर में भक्तगण दूर दूर से अपनी मन्नतें पूरी होने पर आते हैं।