Kargil Vijay Diwas: 20 वर्ष की आयु में वीर गाथा रचने वाले सोलन के बेटे धर्मेंद्र की शहादत को भूली सरकार
Highlights
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25 साल बीते पर नहीं मिला आयुर्वेदिक स्वास्थ्य केंद्र – पिता
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शहीद के पिता बोले सरकार से रहेगा मलाल
Post Himachal, Subathu
Blog Story by Kapil Gupta: देश में जब -जब वीर गाथाओं का इतिहास पढ़ा जाएगा, तब तब जिला सोलन के बुघार पंचायत के जांबाज शहीद धर्मेंद्र की कुर्बानी को याद किया जाएगा। बड़ी छोटी सी उम्र में देश के लिए शहादत पाने वाले शहीद धर्मेंद्र ने पाकिस्तान को कारगिल युद्ध में अपने शौर्य का पराक्रम दिखाते हुए धूल चटाई ओर अंत में शहादत को गले लगा लिया। विजय दिवस के अवसर पर शहीद धर्मेंद्र के पिता से उनकी वीरता पर बातचीत की तो शहीद धर्मेंद्र के पिता ने अपने बेटे की शौर्य गाथा सुनाते गर्व महसूस कर रहे थे। वहीं सरकार से मलाल जाहिर करते हुए कह रहे थे कि उन्हें अपने बेटे की कुर्बानी पर गर्व है। उसकी कमी कभी भी पूरी नहीं हो सकती । शहीद धर्मेंद्र के पिता ने उसकी याद में अपने खर्चे पर गांव के स्कूल के किनारे मंदिर की तरह एक प्रतिमा बनाई है, ताकि आगे आनी वाली पीढ़ी को शहीदो की शहादत से प्रेरणा मिलती रहे । शहीद के पिता ने कहा की बेटे की शहादत को भुला न जाइए और समय समय पर मान – सम्मान मिलता रहे । शहीद के पिता नरपत सिंह ने कहा की सेना की तरफ से उनके परिवार को पूरा सम्मान दिया गया। वहीं प्रशासन ने भी कोई कमी नहीं छोड़ी, लेकिन राजनीतिक दलों ने हमेशा उनकी भावनाओं के साथ खिलवाड़ किया है। उन्होंने कहा कि आज उनके बेटे को शहीद हुए 25 वर्ष बीत चुके है। लेकिन शहीद के गांव के लिए मांगी गई आयुर्वेदिक स्वास्थ्य केंद्र की मांग आज भी बंद फाइलों में अपना दम तोड़ रही है। जिसका मलाल उन्हे हमेशा रहेगा। पिता ने बताया कि कारगिल की लड़ाई में धर्मेंद्र व उसका साथी दुश्मनों से लोहा लेने के लिए सबसे आगे की टुकड़ी में थे। रात के अंधेरे में कवरिंग टीम के साथ दुश्मनों पर लगातार गोली बरसाते हुए दोनों ने दुश्मनों को पीछे खदेड़ने पर विवश कर दिया। बता दें कि शहीद धर्मेंद्र सिंह डाकखाना कुठाड़ तहसील कसौली के बुघार कनैता के रहने वाले थे। उनका जन्म 26 जनवरी 1979 को हुआ। उन्होंने वर्ष 1996 में चंडी से जमा दो की परीक्षा दी और जून 1996 में वह बीआरओ के माध्यम से सेना में भर्ती हुए।
30 जून 1999 को इस तरह लड़ा था सुबाथू का रणबांकुरा
शहीद के पिता नरपत सिंह ने बताया कि धर्मेंद्र पंजाब रेजिमेंट में थे। उनकी पोस्टिंग कारगिल में थी। 30 जून 1999 को धर्मेंद्र व उसका एक साथी युद्ध के दौरान लड़ते हुए रात के अँधरे में सबसे आगे दुश्मनों के बहुत करीब पहुंच गए थे की अचानक से दुश्मनों की लाइट उनपर पड़ गई और बटालिक सेक्टर तीन में घुसपैठियों ने धावा बोला । इसी दौरान जगह बदलते समय गोली धर्मेंद्र की छाती में लगी और वह दुश्मनों से लोहा लेते हुए शहीद हो गया।। 3 जुलाई 1999 को उनका पार्थिव शरीर गंभर नदी लाया गया और पूरे राजकीय और सैनिक सम्मान के साथ पंचतत्व में विलीन हो गया।