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कायर हुनु भंदा मरनो राम्रो: भारतीय सेना में प्रथम गोरखा राइफल्स के गौरवमयी 209 वर्ष

 

  • 24 अप्रैल 1815 में सुबाथू में स्थापित हुई थी प्रथम गोरखा राइफल्स

कपिल गुप्ता


सुबाथू। कायर हुनु भंदा मरनो राम्रो … कायर होने से मरना बेहतर है और जय महाकाली आयो गोरखाली। इस युद्धघोष के साथ विरोधी सेना से लोहा लेने को तैयार गोरखा रेजिमेंट का इतिहास सोलन के सुबाथू से लिखा गया है। यहां अंग्रेजों ने 24 अप्रैल, 1815 को गोरखा रेजिमेंट की स्थापना की थी।आज भी देश की रक्षा में 14 गोरखा प्रशिक्षण केंद्र करीब 209 सालों से अहम भूमिका निभा रहा है। इस सेंटर से करीब 42 हफ्ते के कड़े प्रशिक्षण के बाद सैकड़ों जवान देश की रक्षा के लिए शपथ लेने के बाद बॉर्डर पर तैनात किए जाते हैं।

 

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….इतिहास के पन्नों को पलटकर देखें तो सुबाथू में गोरखा फौज की बहादुरी के किस्से सुनहरे अक्षरों से अपना परिचय दे रहे हैं। जनरल अमर सिंह थापा के नेतृत्व में मालौन किले को ब्रिटिशों के कब्जे से छुड़ाने को मात्र 200 गोरखा सैनिकों ने ब्रिटिश सेना के करीब दो हजार सैनिकों से युद्ध किया। गोरखा फौज ने बंदूकों और तोप से वार करने वाले ब्रिटिश सैनिकों को खुखरी से जवाब दिया था।

सुबाथू के सेवानिवृत्त सैनिक एवं शौर्यचक्र विजेता देवसिंह ठाकुर की मानें तो इस जंग में गोरखा फौज के सामने ब्रिटिशों ने घुटने टेक दिए थे। 14 जीटीसी के म्यूजियम के बाहर मालौन किले से लाई गई ब्रिटिशों की तोप आज भी 209 वर्ष पुराना इतिहास बयां करती है। बता दे की ब्रिटिश सरकार ने 24 अप्रैल,1815 को सुबाथू में प्रथम गोरखा राइफल की स्थापना की। अंग्रेजों ने जब भारत छोड़ा तो उस समय गोरखा राइफल के कुछ सैनिक ब्रिटिश सेना में भी शामिल हुए और कुछ भारत में रह गए। प्रथम गोरखा राइफल और चतुर्थ गोरखा राइफल को मिलाकर 14 जीटीसी प्रशिक्षण केंद्र बना है। देश की रक्षा में अपना जीवन कुर्बान करने वाले शहीदों ने इस सेंटर का नाम गर्व से ऊंचा किया है।

  • कैप्टन गुरुवचन सिंह को मिला था परमवीर चक्र


3/1 जीआर के कैप्टन गुरुवचन सिंह ने कांगो युद्ध के दौरान मात्र 16 सिपाहियों के साथ सैकड़ों हमलावरों को खुखरी से मौत के घाट उतारा था। उनके अद्भुत पराक्रम को देखकर 5 दिसंबर, 1961 में मरणोपरांत उन्हें परमवीर चक्र से नवाजा गया था। सुबाथू का सलारिया पार्क भी कै. गुरुवचन सिंह सलारिया की याद में बनवाया गया था।

  • मेजर जनरल नागरा के नाम से कांपता था पाकिस्तान


गोरखा सेंटर की बहादुरी के किस्से सुनकर भारतीय सेना के जवानों का सीना 56 इंच का हो जाता है। मेजर जनरल गंधर्व नागरा की बहादुरी के किस्से सुनकर आज भी पाकिस्तान की बोलती बंद हो जाती है। इतिहास के पन्नों में सुनहरे अक्षराें से लिखा है कि 1971 में बांग्लादेश को पाकिस्तान से स्वतंत्र करवाने के लिए भारत ने पाकिस्तान को मुंहतोड़ जवाब दिया था। इस युद्ध में पाकिस्तान के 90,000 सैनिकों ने भारत की बहादुरी के आगे शर्मनाक आत्मसमर्पण करते हुए हथियार डाल दिए थे। पाकिस्तान सेना की तरफ से जनरल एए नियाजी और भारत की तरफ से पूर्वी कमान के कमांडर इन चीफ जगजीत सिंह अरोड़ा ने आत्मसमर्पण के दस्तावेज पर हस्ताक्षर किए थे।

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