सिमटता इतिहास: नौ मास मनाई जाने वाली थाची फागली नौ दिनों तक सिमटी
हाइलाइट्स
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रामायण काल से जुड़ा फागली उत्सव का इतिहास
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फागली प्रति तीसरे वर्ष रामनवमी के दौरान ही मनाई जाती है
पोस्ट हिमाचल न्यूज एजेंसी
बालीचौकी(मंडी), मंदीप पंवर। सराज घाटी के थाची क्षेत्र में आज नौ दिन तक चलने वाली फागली उत्सव का शुभारंभ हुआ। सराज घाटी के अराध्य देव श्री बिटठू नारायण की अगुवाई में मनाए जाने वाला यह फागली उत्सव वक्त के साथ साथ सिमट कर मात्र नौ दिनों के रह गए हैं। कुछ समय पूर्व यह फागली नौ सालों तक थाची के मुखौटाधारी प्रदेश के उन भागों में जाते थे, जहां फागली उत्सव मनाए जाते थे। इतना ही नहीं बल्कि कई बार तो इतने लंबे समय तक प्रवासरत रहने के कारण परिवार जन उन्हें बाकायदा अंतिम विदाई तक भी देते थे। इसके उपरांत थाची फागली नौ मास तक मनाई जाने लगी और वर्तमान में यह नौ दिनों तक सिमट कर रह गई है। फागली में लगभग 80 के तहत के मुखौटाधारी, जिन्हें स्थानीय भाषा में मंढयाहले कहा जाता है। देवता के प्रत्येक हारियान के घरों में जाते है और इस दौरान गृह प्रवेश पर लोग उक्त मंढयाहलों की पूजा अर्चना भी करते है और उन्हें प्रवेश उपरांत हारियान श्रद्धावश नकद धनराशि या अनाज इत्यादि भेंट करते है। फागली प्रति तीसरे वर्ष रामनवमी के दौरान ही मनाई जाती है। फागली में मुखौटे रूपी मंढयाहलों में नारायण, लक्ष्मी और हनुमान के अलावा शोशलू और रमू री मंढयाहली मशहूर है। इन मंढयाहलों की यह विशेषता यह भी है कि इनमें से कुछ मुखौटे कई सदियों पुराने है और जब उन्हे पहना जाता है तो बे बहुत कुछ बोलते हुए प्रतीत होते है। कुछ मुखौटों में लंका का नक्शा उकेरा गया है।
इससे यह साबित होता है कि थाची फागली रामायण काल को दर्शाती है। फागनी उत्सव का समापन भी अराध्य देवता बिट्ठू नारायण मंदिर थाची में होता है।