हिमाचल के बस्सी परियोजना के रोपवे पर तीन दशक बाद भी नहीं दौड़ी ट्रोली
हाइलाइट्स
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आधारभूत ढांचा हो गया कबाड़, लाखों की मशीनरी, संसाधन खा गए जंग
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1960 के दशक में भारत के इंजीनियरों ने पावर हाउस के छपरोट स्थित जलाशय के रखरखाव के लिए करवाया था निर्माण
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हिमाचल राज्य विद्युत बोर्ड की उदासीनता से 6 दशक पुरानी धरोहर के मिटने लगे निशान
पोस्ट हिमाचल न्यूज एजेंसी
जोगेंद्रनगर(मंडी)। हिमाचल प्रदेश राज्य विद्युत परियोजना प्रबंधन की मंडी के जोगेंद्रनगर में 66 मैगावाट बस्सी परियोजना के रोपवे पर तीन दशकों बाद भी ट्रोली न दौड़ने से लाखों की मशीनरी और संसाधन जंग खा गए हैं। करीब 800 मीटर रोपवे का ट्रैक भी बदहाल हो गया है। 1960 के दशक में भारत के इंजीनियरों के द्वारा तैयार किए गए ट्रोली का आधारभूत ढांचा भी कबाड़ बनता जा रहा है। विद्युत बोर्ड की इस उदासीनता ने जहां रोपवे के निर्माण और ट्रोली के संचालन को लेकर जिन इंजीनियरों ने अपने हुनर का लोहा मनवाया था उनकी मेहनत भी धराशायी हो गई है। सालाना सौ करोड़ की कमाई करने वाले बस्सी परियोजना प्रबंधन की 6 दशक पुरानी ऐतिहासिक धरोहर से रोपवे के निशान भी मिटने लग पड़े हैं। लाखों रूपये की मशीनरी जिससे दो ट्रोलियों का संचालन होता था वह भी अब इस्तेमाल में लाई जाने के काबिल नहीं रही है। ऐसे में न केवल हिमाचल प्रदेश विद्युत बोर्ड प्रबंधन की कार्यप्रणाली पर भी सवालिया निशान लग गया है।
ब्रिटिश नागरिक कर्नल बैटी की शानन ट्रोली की उपयोगिता को देख हिमाचल में भारत के इंजीनियरों ने अपने हुनर का मनवाया था लोहा
भारत में 1925 में ब्रिटिश नागरिक कर्नल बैटी ने जब शानन पावर हाउस के निर्माण के दौरान ऐशिया का पहला रोपवे बिछाकर करीब आठ हजार उंचाई की फीट पर ट्रोलियों की आवाजाही शुरू की थी तो दुनियां भी आश्चर्यचकित हो गई थी। रोपवे पर ट्रोली की उपयोगिता को देखते हुए 1960 के दशक में भारतीय इंजीनियरों ने बस्सी पावर हाउस से लेकर छपरोट स्थित जलाशय के लिए ट्रोली का निर्माण करवा दिया था। करीब तीस साल तक ट्रोली का संचालन होता रहा। इसके बाद इसके रखरखाव और मरम्मत कार्य में बरती गई कोताही से अब हिमाचल की इस धरोहर का अस्तित्व भी खत्म होता जा रहा है। मौजूदा परिवेश में बस्सी परियोजना के रोपवे में झाड़ियों का साम्राज्य व्यापत है जबकि ट्रोली के आधारभूत ढांचे और मशीनरी लगभग कबाड़ हो गए हैं।
छपरोट स्थित जलाशय तक पहुंचने के लिए पहले ट्रोली से दो किलोमीटर, अब सड़क मार्ग से तय करना पड़ रहा है 22 किलोमीटर का सफर
बस्सी परियोजना के रोपवे पर ट्रोली सेवाएं ठप्प हो जाने से अब छपरोट स्थित जलाशय तक पहुंचने के लिए परियोजना के कर्मचारियों को भी 22 किलोमीटर का सफर तय करना पड़ रहा है। जबकि पहले ट्रोली के माध्यम से यह सफर केवल दो किलोमीटर ही था। बस्सी पावर हाउस से सरकाघाट सड़क मार्ग से जोगेंद्रनगर के शानन तक करीब दस किलोमीटर का सफर कर्मचारियों को करना पड़ रहा है जबकि शानन से छपरोट तक पहुंचने के लिए भी सड़क मार्ग से 12 किलोमीटर का सफर हर रोज पूरा करना पड़ रहा है। बता दें कि छपरोट में 66 मैगावाट परियोजना का जलाशय स्थापित है जहां से पैन स्टॉक के माध्यम से बिजली उत्पादन के लिए पानी की आपूर्ति होती है। बस्सी परियोजना के आरई जितेंद्र ने बताया कि ट्रोली को नए सिरे से शुरू करने को लेकर हिमाचल प्रदेश विद्युत बोर्ड के उच्चाधिकारियों