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यात्रा वृतांत: तो वहां पहुंच गया जहां बसे हैं छोटी काशी मंडी को सुरक्षा कवच देने वाले देव आदि ब्रह्मा (उत्तरशाल टिहरी)

….. 23 साल तक नामी अखबार का हिस्‍सा रहा। बतौर ब्‍यूरो चीफ अधिकांश हिमाचल घूमने का मौका मिला। काम के तमाम बोझ के तले खुलकर जिंदगी जी। कुछ समेटे लम्‍हे यात्रा वृतांत के रूप में समय समय पर  आपसे सांझा करता रहूंगा… मंडी डायरी-1
 …..अखिलेश
मंगलवार, 3 नवंबर 2020

          विवार सबसे खूबसूरत है। अमूमन इसपर सिर्फ अपना हक रहता है। साइकल और पिठ्ठू में समाई दिन भर की खुशियां। जैसे हैडफोन, पावर बैंक, कैमरा, ट्राइपोड, बैटरी, बिछौना, एक किताब, विंड चीटर, काला चश्मा और खाने पीने के थोड़ेे से सामान के साथ ढ़ेरों मनमर्जियां। जाना कहां है? कौन सा रूट चुनना है? ताना बाना शनिवार बुनना होता है। मूड चेंज ना हो तो वही रास्ता, नहीं तो नया। किसी का साथ नहीं। प्रकृति के नजारे लेकर आराम से गुनगुनाते चलते रहना। यहांं के कुछ Tadej Pogačar की तरह रैंक वन के लिए टार्गेट टच करने की ललक तो बिलकुल नहीं। ऐसे ही कछुआ चाल चलते चलते अब तो मंडी के आसपास के पहाड़ों के कई रास्ते कम पड़ने लगे हैं। तो कुछ नए भी दिखने लगे हैै। ऐसेे ही नया ट्रैक तलाशते पहुंचा इलाका उत्तरशाल के टिहरी में, जहां बसे हैं छोटी काशी मंडी को सुरक्षा कवच देने वाले देव आदि ब्रह्मा।
सच में देव स्थान स्वर्ग से कम नहीं। पगौड़ा शैली में बना मंदिर प्रकृतिक सुंदरता के बीच आलौकिक प्रतीत होता है। हरा भरेे आंगन की शोभा मंदिर के सामने का देवदार और निखारता है। मंदिर की सरंचना ध्यान आकर्षित करती है। नजरें एकटक ठहर जाती हैं। हवाओं के बीच मंदिर के द्वार पर लगी घंटियों से निकलने वाली ध्वनी मानों नकारात्मक उर्जा निकालकर शरीर काेे सकारात्‍‍‍‍‍‍मकता भर रही हो।

मंडी-कटिंडी-कटौला-टिहरी-्आदि ब्रह्मा मंदिर


01नवंबर 2020 आज मंडी-कटिंडी-कटौला-टिहरी-आदि ब्रह्मा मंदिर तक का फ्रेश ट्रैक किया। साइकल पर करीब 80 किमी सफर (आपडाउन) थकावट वाला रहा। दिन में नौ घंटे साइकल चलानी पड़ी। सुबह छह बजे मंडी से सफर शुरू किया। सोचा आसान होगा। लेकिन, यह ट्रैक अब तक का सबसे टफ साबित हुआ।  मंडी से कटिंडी और कमांद से कटौला तक तो  हवा के साथ साथ घटा के संग संग ओ साथी चल वाली पूरी फिलींग ली। कटौला के बाद मंदिर तक पहुंचते पहुंचते दिन में रात तारे सब नजर आ गए। वैैसे यहां पहुंंने

 

 


पहाड़ का A caffè mocha

करीब 11 बजे कटौला के आगे टिहरी तक की करीब दस किमी की चढ़ाई खत्म हुई और मंडी से 32 किमी का सफर पूरा हुआ। यहां पहुंचते ही शरीर जवाब दे चुका था। टिहरी में एक किनारे ढाबा दिखा। रोका तो भाई को बातों में लिया। थोड़ी जान पहचान होने के बाद भाई ने फैंटने वाली काफी (चाकलेट, काफी, चीनी) यानी A caffè mocha बनाने की रिक्वेस्ट मान ली। पीकर शरीर चार्ज हुआ तो फिर निकल पड़ा, मंजिल की और। अबआठ किमी ही बचा था। तीन किमी दूर जाकर पांच किमी का मंदिर तक पहुंचने के लिए लिंक था। घना जंगल और सड़क की हालत देखकर लौटने को मन किया। लेकिन दिन है कि मानता नहीं गिरते पड़ते, साइकल से उतरते चढ़ते आखिरकार कैचियों को पार करते हुए मंदिर के दर्शन हो गए।

 

पगौड़ा शैली का मंदिर, कहा देवता बाहर हैं

एक बजे के करीब मंंदि‍र को सामने देखकर खुशी का ठिकाना नहीं रहा। मंदिर काफी पुराना है। लकड़ी और स्लेट पत्थर से निर्मित यह मंदिर पहाड़ी पेगोडा शैली में बना है। मंदिर के सामने खुला मैदान है और देवदार का एक पुराना वृक्ष है। वृक्ष के साथ एक गेट है, जहां घंटिया हवा के साथ साथ खुद ध्वनी कर रही हैं। मैदान में कुछ लोग बैठे हुए थे। बातचीत की तो सभी कहने लगे कि तुम्हें बुलावा था। तभी यहां पहुंचे हो। आज देवता(आदि ब्र्हमा) बाहर हैं। मैं भी लोगों की टोली में शामिल हुआ। वहां भरपूर प्यार मिला। पूछने पर बताया कि एक यहां मंदिर का भी निर्माण किया गया है वो भी काफी सुंदर है। मन्दिर के आस पास गिने चुने ही मकान हैं जिनमे से अधिकतर लकड़ी से निर्मित हैं। लोगों ने कहा कि यहां सर्दियों में खूब बर्फ गिरती है। इसी बीच मंदिर में दर्शन करने के बाद देव ध्वनी के बीच देव नृत्य भी शुरू हुआ और कुछ देर के लिए वहीं खोया रहा।

बालक राम के घर जैस स्वादिष्ट खाना कहां


 



थोड़ी देर के बाद गांव के कुछ लोग पास में आए और बोले सुबह से चले हो कुछ खाया है। मैने कहा ना। तो बालकराम जी ने मुझे घर आने का न्योता दिया। थोड़े संकोच के बाद मैं भी उनके साथ चल पड़ा। मिट़टी के स्लेटनुमा मकान में उन्होंने शिमला मिर्च, मक्खन और दो चपातियों के साथ दूध परोसा। खाना बेहद स्वादिष्ट था, लेकिन उससे अधिक उनका मुझ जैसे अंजान के प्रति स्नेह था। करीब अढ़ाई बजे सभी से रूखस्त लेने के बाद वापसी का सफर शुरू किया। कोशिश थी की रात होने से पहले मंडी पहुंच जाऊं। वैसा ही हुआ शाम करीब साढ़े पांच बजे तक वापिस मंडी जैसे तैसे पहुंच ही गया।


मंदिर के बारे में

उत्तरशाल मंडी का आदी पुर्खा मंदिर हिमाचल प्रदेश में भगवान ब्रह्मा को समर्पित एकऔर मंदिर है। मंदिर के सामने पराशर हिल है। ऐसा माना जाता है कि टिहरी और खोखन गांव कुल्लू रियासत से थे और दोनों गांवों के मूल निवासी खोखन ब्रह्मा की पूजा करते थे। हालांकि, मंडी और कुल्लू के बीच एक क्षेत्रीय विवाद उत्पन्न हुआ और इसके परिणामस्वरूप इन दो गांवों को अलग किया गया। टिहरी के मूल निवासी ने अपना आदी ब्रह्मा मंदिर रखने का फैसला किया और उन्होंने इसे आदी पुर्खा मंदिर नाम दिया। नया मंदिर न केवल खोखन मंदिर के साथ अपना नाम साझा करता है बल्कि वास्तुशिल्प शैली भी साझा करता है।  आदी ब्रह्मा  शिवरात्रि में मंडी शहर में कार बांधते हैं ऐसी मान्यता है क‌ि यह सुरक्षा कवच आपदाओं से बचाते हैं।

 

कैसे पहुंचे


आदि ब्रह्मा मंदिर टिहरी पहुंचने के दो रास्ते हैं। एक कुल्लू के बजौरा से तो दूसरा मंडी कमांद कटौला होते हुए। मंडी से आदि ब्रह्मा मंदिर तक का रास्ता करीब चालिस किमी पड़ता है। मंडी से कटिंढी दस किमी तक खड़ी चढ़ाई है। आगे कमांद तक करीब चार किमी डाउन और फिर क‌टौला तक का रास्ता हलके अप डाउन वाला है। क‌टौला तक आप करीब 22 किमी कवर कर लेते हो। आगे बजौरा मार्ग पर ‌टिहरी तक करीब दस किमी का रास्ता है। यह रास्ता कठिन चढ़ाई वाला है। बीच में पराशर का ‌लिंक भी आता है। टिहरी से करीब दो किमी आगे एक कच्चा लिंक कटता है। य‌‌‌हां बोर्ड तो पांच किमी का लगा है, लकिन एमआईफिट (जीपीस) में मंदिर तक की चढ़ाई छह किमी दर्शाती है। यह रास्ता बेहद खतरनाक है। घना जंगल, धूल मिट्टी , पत्थर, ऊंचाई, चढ़ाई, गहरी ढांक सब है। बारिश में यह रास्ता कवर करना आसान नहीं है। फोर बाइ फोर से ही यहां तक पहुंचा जा सकता है। हालां‌कि साफ दिन में आप बाइक, छोटे वाहन से भी सफर कर सकते हैं। लेकिन छोटा वाहन यहां के लिए उपयुक्त नहीं है। गर्मियों में भी यहां सर्द हवाएं चलती हैं। किसी भी मौसम में आप यहां जा रहे हों तो गर्म कपड़े डालना ना भूलें और खाने पीने का सामरन भी।

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