अध्यात्म: लोगों की अटूट आस्था का प्रतीक बनिया देवी का प्राचीन वनदुर्गा शक्तिपीठ
हाइलाइट्स
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धार्मिक पर्यटन स्थल की यहां अपार संभावनाएं
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बाघल रियासत से जुड़ा है मंदिर का गौरवमयी इतिहास
अक्षरेश शर्मा
कुनिहार(सोलन)। प्राचीन वन दुर्गा शक्ति पीठ बनिया देवी के लिए उपमंडल अर्की के लोगो मे अटूट आस्था है। अर्की से करीब 10 किलोमीटर भराड़ीघाट मार्ग पर दीदु नामक स्थान से मंदिर तक पैदल व सड़क मार्ग से भी पहुंचा जा सकता है। खेत खलियान व घने पेड़ों की बीच जमीन से फूटा मीठे पानी का स्रोत यहां की खूबसूरती को चार चांद लगाता है। जंगल मे पक्षियों के चहचाहट के बीच यंहा वनदेवी के सानिध्य में आत्मिक शांति मिलती है।प्राकृतिक सौंदर्य को देखते हुए ऐसा लगता है कि पूर्व में घने जंगल मे विराजमान होने के कारण यंहा का नाम वन देवी रहा होगा,जो आज समय परिवर्तन के साथ बनिया देवी हो गया होगा। प्राकृतिक सुंदरता से लबरेज मंदिर का इतिहास बाघल की रियासतकाल से जुड़ा है। इस स्थान को अगर धार्मिक पर्यटन के रूप में संवारा जाए तो यहां पर्यटन की अपार संभावनाएं हैंं।
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अगर बनिया देवी के इतिहास पर गौर किया जाए,तो जनश्रुति के अनुसार राजाओं के शासन काल मे इस जगह पर अपार पानी के कारण लोगों के मन मे खेती बाड़ी के ख्याल आए होंगे।इस जगह पर जब एक किसान द्वारा खेत बनाने के लिए कुदाल द्वारा खुदाई की जा रही थी,तो जमीन में कुदाल चलाने हुए शिला से टकराने पर धरती से चीख निकली व फिर वंहा से एक रक्त धारा फूट पड़ी। किसान यह देख कर घबरा कर बेहोश हो गया। ग्रामीणों द्वारा होश में लाने के उपरांत उसने यह विवरण सभी के समक्ष रखा व ग्रामीणों ने तत्कालीन बाघल रियासत के राजा को उक्त घटनाक्रम को सुनाया।राजा ने इस जगह पर गहरी खुदाई के आदेश दिए।
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खुदाई करने पर जमीन से पत्थर की शीला पर मां दुर्गा की मूर्ति प्रकट हुई।राजा इस मूर्ति को अपने महल अर्की ले जाना चाहता था,परन्तु सेंकड़ों फुट गहराई तक खुदाई करने पर भी इस शीला का कोई अंत नही हुआ।राजा जब इस खुदाई से हार गया,तब भगवती दुर्गा ने राजा को दृष्टान्त दिया,कि मैं तुम्हारी कुल देवी हूं व मै जन कल्याण के लिये यंही यथावत रहूंगी, यहीं पर मेरा मंदिर बनवाया जाए। राजा ने यहीं पर मां बनिया देवी का मंदिर बनवा कर ग्राम मयाणा धुन्धन के पुजारियों से विधिवत मूर्ति स्थापना करवा कर नित्य पूजा पाठ व देखरेख की जिम्मेवारी दी,जिसे आज भी उस क्षेत्र के पुजारी पूरी निष्ठा व लग्न से निभा रहे हैं।
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आज समय परिवर्तन के साथ मां बनिया देवी मंदिर कमेटी का पंजीकरण करवाकर विकासात्मक कार्य करवाये जा रहे हैं।ज्येष्ठ माह(मई) की संक्राति को बनिया देवी मेला मनाया जाता है।हजारों की संख्या में श्रद्धालु अपनी कुल्ज़ा के दर्शन करके नई फसल का नजराना चढ़ाते हैं व मां का आशीर्वाद लेते है। प्रदेश सरकार इस स्थान को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने हेतु अगर योजनाबद्ध कार्य करे, तो यंहा पर पर्यटन की अपार संभावनाएं हो सकती है व स्थानीय युवाओं व लोगो का रोजगार भी बढ़ सकता है।