वरिष्ठ कहानीकार 94 वर्षीय संतोष चौहान भेंट की ‘हिमाचल की हिंदी कहानी विकास और विश्लेषण’
Post Himachal, Kunihar
हिमाचल की वरिष्ठ कहानी कार 94 वर्षीय संतोष चौहान को प्रदेश के वरिष्ठ आलोचक, लेखक व साहित्यकार डा. हेमराज कौशिक ने अपनी प्रकाशित आलोचना पुस्तक ‘हिमाचल की हिंदी कहानी विकास और विश्लेषण’ भेंट की। डा. कौशिक ने अर्की में कहानी कार संतोष चौहान से मुलाकात की और इस पुस्तक की प्रति उनके के साथ की गई वार्ता के उपरांत प्रदान की।
नाहन निवासी संतोष चौहान (वर्तमान में चंदेल) छठे दशक में हिमाचल की कहानी यात्रा में अवतरित होने वाली कदाचित पहली महिला कहानीकार हैं। उनकी छठे दशक में आठ कहानियां प्रकाशित हुईं, जिनमें मुख्यत: आगरा से प्रकाशित होने वाली मासिक पत्रिका युवक में उनकी पांच कहानियां प्रकाशित हुईं। इनमें पहली कहानी 1953 में वास्तविक रूप से मासिक युवक पत्रिका में उषा अरुण मेघ 1953, प्रियतमा का स्वागत 1954, नेत्र हीन 1960, जीवन आहुतियां 1960 में प्रकाशित हुईं। इसके साथ ही हिमप्रस्थ में प्रशासन के प्रारंभिक वर्षों में पीले हाथ 1956, खोया हुआ कोर्ट 1956, तमाचा 1958 प्रकाशित हुई। संतोष चंदेल की कहानियों में संवेदना सामाजिक संबंधों पर केंद्रित होती हैं। सामाजिक संबंधों के ताने-बाने में नारी नियति, पुरुष वर्चस्व, अनमेल विवाह, दहेज की विभीषिका, प्रेम की नैतिकता, किशोर वय के प्रेम की अमिट स्मृति आदि अनेक पक्षों को व्यक्त करती है। उन्होंने अपने लेखन में शहरी मध्यवर्ग की प्रदर्शन वृत्ति और गांव में निवास करने वाले अपने ही समधियों के प्रति उपेक्षा भाव और संकीर्ण मानसिकता आदि का चित्रण बखूबी किया है। कहानीकार संतोष चंदेल ने गांव के सेठ-साहूकारों की अमानवीयता और शोषण वृत्ति व गांव के व्यक्ति के घोर दारिद्रय में भी साहूकारों की शोषण मूलक प्रवृत्ति को रेखाचित किया है।
संतोष चंदेल सहित उनकी पुत्री मोनिका वर्मा व दामाद डा. हेतराम वर्मा ने पुस्तक भेंट करने और इन कहानियों के प्रकाशन व अपनी पुस्तक हिमाचल की हिंदी कहानी विकास और विश्लेषण में स्थान देने के लिए वरिष्ठ आलोचक, लेखक एवं साहित्यकार डॉक्टर हेमराज कौशिक का आभार व्यक्त किया है।