हाइलाइट्स
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72 घंटे भाजपा के राष्ट्रीय मुख्यालय में बैठे होने के बावजूद बागियों के भविष्य में फैसला नहीं
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प्रतिभा की बेबाकी और अनुराग की खामोशी में हालात और संगीन, समय के साथ उलझता जा रहा मामला
पकंज पंडित
प्रदेश में बगावत के सियासी भंवर में सुख की सरकार को डुबाने में जुटी भाजपा व उनका साथ दे रहे बागी खुद भी गोते खाते नजर आ रहे हैं। हालात यह हैं कि 72 घंटे भाजपा के राष्ट्रीय मुख्यालय में बैठे होने के बावजूद अब तक बागियों का भविष्य का फैसला नहीं हो पा रहा है। भाजपा भी बगावत व संगठन में संतुलन साधने में जुटी है। लेकिन, जैसे- जैसे समय बढ़ता जा रहा है, मामला उलझता जा रहा है। पूरे मामले में प्रतिभा की बेबाकी और अनुराग की खामोशी में हालात और संगीन बना दिए हैं। ऐसे में अब भविष्य ही तय करेगा कि इस भंवर से बचकर कौन विजेता बनेगा।
Congress
कांग्रेस के लिए बागवत के बाद पार्टी में सरकार अस्थिर हो गई है। हालात यह हैं कि कांग्रेस में कोई भी एक दूसरे पर भरोसा नहीं कर पा रहा है। चुनावों के समय कांग्रेस को भाजपा के बजाय अपने अंदरुणी लड़ाई में ताकत लगानी पड़ रही है। वहीं वर्तमान राजनैतिक हालत में सरकार का भविष्य भी तय नहीं है। जिससे कांग्रेस को बड़ा सियासी नुकसान हो सकता है। प्रतिभा और सुक्खू के बीच में संवाद शून्य है। न केवल कार्यकर्ताओं बल्कि आम जनता में भी अविश्वास का माहौल पैदा कर रहा है। कांग्रेस को सरकार बचाने के साथ साथ लोकसभा चुनाव व उपचुनाव में बेहतर प्रदर्शन की चुनौती है, लेकिन कांग्रेस के वर्तमान हालात में स्थितियां उतनी बेहतर नजर नहीं आ रही हैं। जो कहीं न कहीं सरकार और कांग्रेस को नुकसान पहुंचा रही है।
भाजपा
छह विधायकों को बागी पर मास्टर स्ट्रोक लगाने का दावा करने वाली भाजपा अपने शाट में ही फंसती नजर आ रही है। एक तरफ उनके कंधों पर छह बागियों के राजनैतिक भविष्य को बचाने की जवाबदेही है, वहीं, अपने कार्यकर्ताग्ओं के बीच फैले असंतोष को भी दबाना जरूरी है। लोकसभा में मजबूत नजर आने वाली भाजपा के लिए इन बागियों को एडजस्ट करना भारी पड़ सकता है। क्योंकि इनमें कुछ एक बागी ऐसे विधानसभा क्षेत्रों से हैं, जहा भाजपा के पहले से ही बड़े और मजबूत नेता मौजूद हैं। अब भाजपा को बगावत का इनाम या पाटर्ी से वफादारी में से एक को चुनना है। यहीं से भाजपा की दुविधा शुरू होती है। अधिकांश बागी हमीरपुर संसदीय क्षेत्र से संबंध रखते हैं। जहां से भाजपा के कद्दावर नेता अनुराग ठाकुर चुनाव लड़ते हैं और धूमल परिवार का दबदबा है। ऐसे में राजेंद्र राणा व निर्दलीय होशियार सिंह के धूमल परिवार से मतभेद सभी को पता है। ऐसे में क्या धूमल परिवार पुराने जख्मों को भूलकर लोकसभा चुनावों को देखते हुए नए समीकरण बनाएगा।सबसे अहम पहलू यह है कि अब तक इन बागियों के मामले से अनुराग ठाकुर ने पूरी तरह दूरी बनाकर रखी है। जयराम ठाकुर ही वर्तमान में इस पूरे मामले को लेकर मुखर हैं। धूमल और जयराम खेमे की आपसी राजनीति भी इन बागियों का भविष्य तय करने में अहम रहेगी।
बागी
बड़े राजनैतिक धमाके की मंशा लेकर बगावत करने वाले कांग्रेस के छह विधायक भी अब अपने राजनैतिक भविष्य को लेकर चिंता में पड़ गए हैं। पिछले एक माह से प्रदेश से बनवास झेल रहे नेताओं को अब न कांग्रेस का बुलावा है। वहीं भाजपा भी उन्हें क्लीन चिट नहीं दे रही है। कुछ नेताओं ने सोशल मीडिया के माध्यम से अपने लोगों से जुड़ने का प्रयास किया है, लेकिन राजनैतिक जमीन पर हालात उनके अनुकूल नहीं हैं। एक तरफ उन्हें, कांग्रेस की ओर से बागी और धोखेबाज और बिकाउ का तगमा मिल रहा है, वहीं उन्हें अपने अपने क्षेत्र में भाजपा से कोई भी सहानुभूति नहीं मिल पा रही है। इस पूरे प्रकरण की पटकथा लिखने वालों ने कभी नहीं सोचा होगा कि यह पूरी राजनैतिक पिफल्म कितने सस्पेंस और थ्रिलर से भरी होगी कि जिसमें पता ही नहीं चलेगा कौन विलन है और कौन नायक। बागी भाजपा में जाने का रास्ता भी तलाश रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट के तकनीकी कारण भी उनके लिए परेशानी बने हुए हैं। जैसे जैसे समय बीतता जा रहा है, वैसे वैसे बागियों की परेशानियों भी बढ़ती जा रही हैं। अगर सही समय पर सही उनके पक्ष में फैसला नहीं आया तो जो सियासी भंवर उन्होंने पैदा किया थाउ उसमें उन्हीं के डूब जाने की आशंका बढ़ती जा रही।