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Media Review: हिमाचल के सियासी भंवर में फंसी कांग्रेस

हाइलाइट्स

  • बीबीसी बता रही क्‍या हो सकते हैं कांग्रेस के बचने के तरीके

  • ट्रिब्‍यून लिख रही हिमाचल में सत्‍ता की लड़ाई तो अभी शुरू हुई

  • द टाइम्स ऑफ इंडिया के अनुसार विक्रमादित्‍य का विरोध कांग्रेस के गिरने की बनेगा वजह

  • जागरण लिखता है कि बच गई सुक्खू सरकार… पर संकट अब भी बरकरार

  • भास्‍कर की सोच हिमाचल में सरकार पर संकट टला, सीएम पर बरकरार


शिमला। शांत हिमाचल की सत्‍तारूढ़ कांग्रेस में उठे सियासी तूफान में राज्‍यसभा की सीट उड़कर भाजपा के खेमे में पहुंच चुकी है।अब सीएम की कुर्सी हिचकौले ले रही है। दो दिन से हिमाचल की सियासत के इस हाईवोल्‍टेज ड्रामे के करंट से नेश्‍नल-इंटरनेश्‍नल मीडिया भी अछूता नहीं रहा है। चार संसदीय , 68 विधान सभा क्षेत्र और एक राज्‍यसभा की सीट के चलते देश में छोटे सियासी राज्‍य हिमाचल में सियासत हमेशा हाशिये पर रही। या यूं कहें कि यहां की सियासत को तवज्‍जो नहीं मिली, लेकिन बहुमत के बावजूद सत्‍तासीन कांग्रेस के राज्‍यसभा चुनाव हारने के बाद कांग्रेस की फूट और सरकार गिराने की बीजेपी की जोरआजमाइश ने हिमाचल की सियासत को देश दुनिया के मीडि़या में चर्चित कर दिया है। भाजपा का पर्ची सिस्‍टम से चुनाव जीतना भी खूब सुर्खियां बटोर रहा है…..

…..बीबीसी लिख रहा है कि हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस सरकार बुधवार को संघर्ष करती हुई नज़र आई। राज्यसभा चुनाव में हिमाचल की एक सीट पर मिली हार के बाद राज्य में कांग्रेस के अंदर सब कुछ ठीक नहीं है। हिमाचल सरकार में मंत्री विक्रमादित्य सिंह ने भी अपने पद से इस्तीफ़ा देने की घोषणा बुधवार सुबह की थी। हालांकि बाद में वो इसे लेकर नरम दिखे।
…..द ट्रिब्यून की रिपोर्ट में कहा है कि ट्रिब्यून की रिपोर्ट में कहा गया है कि बीजेपी सत्तारूढ़ कांग्रेस के और विधायकों को अपने साथ लाने की कोशिशों में जुटी हुई है। ऐसे में हिमाचल में सत्ता की लड़ाई अभी तो बस शुरू हुई है।
हालांकि हिमाचल विधानसभा में कांग्रेस सरकार बुधवार को बजट पास करवाने में सफल रही। हिमाचल प्रदेश की कांग्रेस सरकार ने बजट भले ही पास करवा लिया है, मगर सुक्खू सरकार की मुश्किलें ख़त्म नहीं हुईं हैं।
…………….द टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक़, हिमाचल में कांग्रेस सरकार पर ख़तरा मंडराने की एक वजह विक्रमादित्य सिंह का सुक्खू के विरोध में आ जाना भी है। राज्यसभा के लिए वोटिंग वाले दिन विक्रमादित्य सिंह ने कहा था, ”जहां तक मेरी अंतरात्मा की बात है वो स्पष्ट है। बाक़ी किसी ने क्रॉस वोटिंग की हो तो उसके बारे में पता नहीं है। मंगलवार को जो विक्रमादित्य कांग्रेस के साथ होने की बात कर रहे थे, बुधवार को वही सुक्खू सरकार के ख़िलाफ़ नज़र आए। बाद में सीएम सुक्खू ने विक्रमादित्य सिंह को अपना छोटा भाई बताया और उनकी समस्याओं को सुनने की बात कही। बुधवार रात को विक्रमादित्य सिंह जब मीडिया के सामने आए तो इस्तीफ़े पर नरम नज़र आए।
…………….इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट में कहा गया है कि जन-प्रतिनिधि क़ानून में ऐसी स्थिति के लिए नियम है कि जब दोनों पक्षों को बराबर वोट मिलें तो क्या करना चाहिए। क़ानून का सेक्शन 65 कहता है कि मतदान प्रक्रिया पूरी होने के बाद अगर उम्मीदवारों के बीच बराबर वोट पाए जाते हैं तो लॉटरी से ज़रिए किसी को विजेता घोषित किया जा सकता है। इस क़ानून में अदालत से भी इसी प्रक्रिया को मानने के लिए कहा गया है। इस तरह से लॉटरी के ज़रिए कोई चुना हुया है या नहीं, इसकी जानकारी चुनाव आयोग की वेबसाइट पर नहीं है।
……………..जागरण लिखता है कि बच गई सुक्खू सरकार, पर संकट अब भी बरकरार। हिमाचल प्रदेश में राज्यसभा चुनाव में क्रॉस वोटिंग के बाद शुरू हुआ राजनीतिक खेल और तेज हो गया है। जिस तरह कांग्रेस के विधायकों ने क्रॉस वोटिंग की, उसके बाद माना जा रहा था कि बुधवार को बजट पारित नहीं होगा और सरकार गिर जाएगी, लेकिन विपक्ष की अनुपस्थिति में बजट ध्वनिमत से पारित हो गया।इसके बाद विधानसभा अध्यक्ष कुलदीप सिंह पठानिया ने सदन की कार्यवाही एक दिन पहले ही अनिश्चितकाल के लिए स्थगित कर दी। दो दिन से चल रही उठापटक के बीच सुखविंदर सिंह सुक्खू सरकार अभी भले ही बच गई हो, लेकिन संकट बरकरार है, क्योंकि विपक्ष अविश्वास प्रस्ताव लाने की बात कह चुका है।
…भास्‍कर लिखता है कि हिमाचल में सरकार पर संकट टला, सीएम पर बरकरार
हिमाचल में कांग्रेस सरकार पर आया संकट कुछ समय के लिए टलता हुआ नजर आ रहा है। बुधवार को छह कांग्रेसी विधायकों की क्रॉस वोटिंग से राज्यसभा सीट हारने के बाद कांग्रेस में खींचतान सरकार जाने तक पहुंच गई। जिसके बाद हाईकमान ने संकट को दूर करने के लिए 2 ऑब्जर्वर हरियाणा के पूर्व सीएम भूपेंद्र हुड्‌डा और कर्नाटक के डिप्टी सीएम डीके शिव कुमार शिमला भेजे।
  • भाजपा को 14 विधायकों को तोड़ना होगा

    बीजेपी अगर कांग्रेस के विधायकों को तोड़ती है तो कम से कम 14 विधायकों को तोड़ना होगा। तभी दलबदल क़ानून से बचा जा सकता है। अभी कांग्रेस के केवल छह विधायकों ने ही बीजेपी को वोट किया था। जिन्‍हें निष्‍काासित किया जा चुका है।
  • मंगलवार को उठना शुरू हुआ था

    सियासी बवंडरहिमाचल में सियासी हलचल बढ़ने की शुरुआत मंगलवार को तब हुई थी, जब 40 विधायकों वाली कांग्रेस को 25 विधायकों वाली बीजेपी के सामने हार का सामना करना पड़ा था। कांग्रेस के छह विधायकों, तीन निर्दलीय विधायकों ने बीजेपी के पक्ष में वोटिंग की और हर्ष महाजन ये सीट जीतने में सफल रहे। इसके बाद सुक्खू सरकार के बने रहने पर सवाल उठने लगे थे। राज्य में कांग्रेस को संघर्ष करता देख पार्टी आलाकमान ने डीके शिवकुमार, भूपेंद्र सिंह हुड्डा और भूपेश बघेल को पर्यवेक्षक बनाकर हिमाचल भेजा है।ये नेता विधायकों से बात कर रहे हैं और उनकी समस्याओं को सुन रहे हैं।
उत्तर भारत में कांग्रेस की सरकार सिर्फ़ हिमाचल में है। ऐसे में लोकसभा चुनाव से पहले ये विरोध पार्टी के लिए मुश्किलें ला सकता है। कांग्रेस से बाग़ी हुए विधायकों की अगुवाई तीन बार के विधायक राजेंद्र राणा कर रहे हैं। वो सुक्खू के ज़िले हमीरपुर के सुजानपुर से आते हैं। इसके अलावा चार बार से धर्मशाला से विधायक सुधीर शर्मा ने भी कांग्रेस के खि‍ लाफ जाने का फ़ैसला किया।

क्रॉस वोटिंग करने वाले अन्‍य 


बड़सर से विधायक इंद्रदत्त लखनपाल
लाहौल स्पीति से विधायक रवि ठाकुर
गगरेट से विधायक चैतन्य शर्मा
कुटलेहड़ से विधायक दविंद्र कुमार

कांग्रेस के छह विधायकों के अलावा तीन निर्दलीय विधायकों ने भी राज्यसभा चुनाव में बीजेपी के लिए वोटिंग की थी।

हमीरपुर से विधायक आशीष शर्मा
डेहरा से होशियार सिंह
नालागढ़ से केएल ठाकुर

 

विधायक नाराज़ क्यों?

  • राज्य में कांग्रेस की जीत के बाद राणा को कैबिनेट में जगह मिलने की उम्मीद थी. लेकिन सुक्खू कैबिनेट में राणा को जगह नहीं मिली थी।

  • राणा 2014 में कांग्रेस में शामिल हुए थे। 2012 में वो निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर चुनाव में जीते थे और राज्य नेतृत्व की खुलकर आलोचना करते रहे।

  • वीरभद्र सरकार में सुधीर शर्मा शहरी विकास मंत्री रहे थे लेकिन उन्हें भी सुक्खू कैबिनेट में जगह नहीं मिली थी।

  • देविंद्र भुट्टो पहली बार कांग्रेस की टिकट पर जीतकर विधायक बने हैं। वो 2013 में बीजेपी छोड़कर कांग्रेस में शामिल हुए थे। सुक्खू सरकार पर अवहेलना करने का आरोप वो लगाते रहे हैं।

  • लखनपाल तीन बार विधायक रह चुके हैं। वो शिमला म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन में काउंसलर रह चुके हैं। इन्हें भी उम्मीद थी कि सुक्खू कैबिनेट में जगह मिलेगी मगर ऐसा हो ना सका।

  • चैतन्य शर्मा भी अपने विधानसभा क्षेत्र में काम ना करवाए जाने को लेकर सुक्खू सरकार की आलोचना करते रहे हैं। उत्तराखंड के पूर्व चीफ सेक्रेटरी राकेश शर्मा के बेटे चैतन्य ने अमेरिका से पढ़ाई की है।

  • रवि ठाकुर ने भी सुक्खू सरकार पर उनकी विधानसभा को नज़रअंदाज़ करने का आरोप लगाया है.
  • हमीरपुर से निर्दलीय विधायक आशीष शर्मा ने 2022 चुनाव में कांग्रेस और बीजेपी दोनों से टिकट मांगा था। मगर जब टिकट नहीं मिला तो वो निर्दलीय ही चुनाव लड़े।
  • होशियार सिंह दो बार से निर्दलीय विधायक हैं। हालांकि बीच में वो बीजेपी में शामिल हुए थे, मगर 2022 में बीजेपी ने उन्हें टिकट नहीं दी थी। वो टिकट की मांग के साथ कांग्रेस के पास भी पहुंचे थे।
  • नालागढ़ से निर्दलीय विधायक पहली बार बीजेपी की टिकट पर 2012 में जीते थे। हालांकि 2017 चुनाव में वो हार गए थे और 2022 में पार्टी ने जब टिकट नहीं दिया तो वो निर्दलीय चुनाव लड़े।

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CONTENT -INTERNET MEDIA

 

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