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भीष्म पंचक व्रत का समापन, गम्बर खड्ड में महिलाओं ने किए दीप विसर्जित

  • भीष्म पंचक व्रत कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी से पूर्णिमा तक मनाया जाता है।

  • व्रत में पांच दिन तक अखण्ड दीपक जलाकर भगवान वासुदेव और भीष्म पितामह की पूजा की जाती है।

  • धार्मिक मान्यता के अनुसार, इस व्रत का पालन करने से व्यक्ति को शुभ फल प्राप्त होते हैं।

कुनिहार: कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी (12 नवंबर) से भीष्म पंचक व्रत की शुरुआत हो चुकी है, जो पांच दिनों तक चलता है और कार्तिक पूर्णिमा पर समाप्त होता है। इस व्रत के दौरान पांच दिनों तक घरों में अखण्ड दीपक जलाए जाते हैं। भीष्म पंचक व्रत का समापन बैकुंठ चौदस पर होता है, इस दिन दीपक को किसी मंदिर में या नदी में 365 बातियों के साथ विसर्जित किया जाता है। कुनिहार क्षेत्र में दयोथल पुल पर बैकुंठ चौदस के अवसर पर महिलाओं ने गम्बर खड्ड में दीप विसर्जित किए। इसके बाद क्षेत्र के विभिन्न मंदिरों में भी दीप जलाए गए।

धार्मिक मान्यता और पूजा विधि:
पुराणों में वर्णित है कि भीष्म पंचक व्रत भगवान वासुदेव से भीष्म पितामह को प्राप्त हुआ था और इसे श्री कृष्ण द्वारा प्रारंभ कराया गया था। इस व्रत का पालन करने वाले को शुभ फल की प्राप्ति होती है। व्रत के पहले दिन व्रती पांच दिन के संकल्प के साथ पूजा करते हैं। प्रत्येक दिन क्रमशः देवताओं, ऋषियों और पितरों का स्मरण किया जाता है। व्रत में लक्ष्मीनारायण जी की मूर्ति की पूजा विशेष महत्व रखती है। पूजा की विधि में पांच दिनों तक शरीर के विभिन्न अंगों की पूजा की जाती है – पहले दिन बिल्वपत्र, दूसरे दिन केतकी पुष्प, तीसरे दिन चमेली पुष्प, चौथे दिन तुलसी की मंजरी का उपयोग कर पूजा की जाती है।

आस्था की प्रतीक किंवदंती:
भीष्म पंचक को भीष्म पितामह की तपस्या से जोड़कर देखा जाता है। जब भीष्म पितामह बाणों की शैय्या पर थे, तब उन्हें उत्तरायण के दौरान बैकुंठ चौदस पर मोक्ष प्राप्त हुआ था और वे श्री हरि के चरणों में स्थान प्राप्त कर सके थे।

 

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